मंगलवार, सितंबर 02, 2008

मोची चच्चा

मोची चाचा ...
राम शशि एक आम आदमी , हसरत थी पढ़ने की कुछ करने की पर हैसियत ने उम्मीद का दामन छोड़ दिया /
भूख के सामने तमन्नाये उड़ान भर ना सकी / मट्रिक के बाद पेशे से जुड़ना पड़ा , आज वो एक मोची है / दूर जो वो दूकान थी वो राम शशि की है,अकसर वहां लोग अपने फटे पुराने जुटे -चप्पल की मरम्मत कराने के लिये रुकते है /थोड़ा करीब गया और करीब गया तो राम शशि की वो दूकान पाठशाला बनती दिखी , समझने को कुछ नही था ये तो राम शशि की वो धुंधली सी तस्वीर थी जिसमे वो रंग भरने की कोशीस कर रहा था /दिल की ये आरजू है की दूसरा राम शशि न बने /
छुटकी को गणित सिखाते है तो बीच बीच मे अलका को पहडा भी पढाते है / छोटू पीछे शरारत करता है तो एक बार निगरानी भी करते है मास्टर साहब जैसे तो लगते नही लगते पर ये उनकी पाठशाला है और राम शशि उनके मास्टर साहब है /इनसे इनको उम्मीद बस इतनी है की कल ये कुछ बनेंगे और जब भी इनसे मिलेंगे तो इन्हे आदर दे प्रणाम करेंगे /
कल तक सोनी फ़िर मोहन ,उसके बाद चंचल फ़िर रेखा , बच्चे आते गए सड़क के किनारे पढने पढाने का दौर शुरू हुआ /राम शशि मे पढाने की इक्छा शक्ति है ,लड़को मे पढने की ललक है /
बच्चो की लगातार बढ़ रहे तादाद सरकार को सोचने पर मजबूर करती है कि बच्चों को स्कूल चाहिए , पढ़ाई चाहिए ना कि खिचडी कि खुराक /


काया आपने कभी सोचा है ?..................

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